हमारे भिन्डी और बरबटी के सुन्दर पौधों ने अपने उद्देश्य की सेवा की। हमारे स्कूल के दोपहर का भोजन बनाने वाले रसोई ने हमारे कार्बनिक भूखंड के उत्पादों को शोषित कर लिया। ( बिल्कुल सच, छात्रों के कच्ची भिंडियां खाने के बाद बची हुई उत्पाद! हाँ , हम जानते हैं कि आप क्या सोच रहे हैं, कच्ची भिंडी? पर, छात्रों को इससे बहुत प्यार है! हमें लगता है कि कार्बनिक रूप से सब्ज़ियाँ उगाते समय इसका मिठास से कुछ लेना- देना रहता है। )
On our second anniversary at the E-Base Pench, we would like to introduce our E-Base to the students at the Third Pole E-Base in Leh.
The Third Pole E-Base which was set up in August, 2013 is the third E-Base in the world. Once again, an E- Base set up in India! With an E-Base in Antarctica, two in India and many more in the pipeline around the world, a network of global environmental leaders connected through the E-Bases is no longer a distant dream.
Our students wished to virtually bring the students of Leh into their special green educational space and this is a shout out to all at the Third Pole E-Base on this very special day for all of us in Pench.
हमारे ई-बेस कार्यक्रम के भाग के रूप में, हमने अपने उपर ना सिर्फ कार्बनिक अपितु स्थिरता लाने की भी जिम्मेदारी ली! इस साल का हमारा दूसरा परियोजना कार्य यहाँ प्रस्तुत है-
कोहका मध्य विद्यालय के पास अब एक अत्यंत मनोरंजक इकाई है – उर्वरक इकाई!
इस समय, हम गुस्से और सदमे की चरम सीमा पर हैं। हमें सीमा से अधिक रोष आ रहा है! पालक और मेथी के पौधों पर हमारा दूसरा प्रयास अक्टूबर में असामयिक वर्षा से निरस्त हो गया। हमने सोचा कि हमने सितंबर में ही मानसून को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन यह बस यहीं कहीं कोने में छुपा बैठा था।
Perhaps one of the biggest elephants in the room, waste, was literally welcomed to the E-Base this workshop. To introduce students to waste and its hazards, Green the Gap jumped in to share a little of their knowledge with our students at the E-Base.
शायद कमरे के कचड़ों के बीच से एक बहुत बड़े कचड़े का सचमुच ई-बेस में इस वर्कशॉप के दौरान स्वागत किया गया था। छात्रों को कचड़े और इनके खतरों से परिचित कराने के लिए ग्रीन द गैप ने अपने थोड़े से ज्ञान को साझा करने का कदम उठाया।
इस महीने, हमारे छात्रों को अंततः उनके स्कूल पिछवाड़े और स्टोर रूम में पुराने और फटे पाठ्यपुस्तकों के बढ़ते ढेर के लिए एक हल मिल गया। भवन्स कॉलेज, मुंबई , के श्री हिमांशु जोशी और विनोद गोसावी कागज की लुगदी के विशेषज्ञ उनकी पुरानी पाठ्यपुस्तकों के साथ छात्रों को कुछ गुर दिखाने के लिए आए थे।
Our beautiful Bhindi and Barbati plants served their purpose. Our Midday Meal Kitchen in the shcool absorbed all the produce of our organic patch (off course, the produce that remains after the students eat the raw bhindi! Yes, we know what you’re think, raw Bhindi? But, the students love it! We think it has something to do with the sweetness in vegetables when grown organically.)
As part of our E-Base program for the year, we have taken it upon ourselves to not only go organic, but also be sustainable! Here’s introducing our second project for the year-
Kohka Middle School now has a very exciting addition- a compost unit!
At this moment, we are more than just blue. We are borderline furious! Our second attempt at the Palak and Methi plants got nullified by terribly untimely rain in October. We thought we had left the monsoon behind in September, but it was just lurking around the corner.