हालांकि, टिकाडी, पारास्पनी और सर्राह के वन ग्रामों में रहनेवाले छात्र पेंच बाघ अभ्यारण्य के आसपास रहते हैं, पर उनमें से कुछ ने ही वास्तव में बाघ देखा है या उसके व्यवहार के बारे में जानते हैं।
हमारी कार्यक्रम समन्वयक , पूजा चोकसी ने उन्हें बाघों के दुनिया की एक झलक दे दी – जहाँ बाघ रहते हैं, उनके व्यवहार के तरीके, उनके शरीर की रचना, उनकी आदतें तथा उनकी उप प्रजातियाँ।
हर गतिविधि पर छात्र अपने राष्ट्रीय पशु के बारे में पता चलने वाले तथ्यों से चकित थे।
श्री तिवारी, पेंच बाघ अभ्यारण्य के रेंज अधिकारी ने विनयपूर्वक उन्हें वन रक्षकों के कुछ कार्य दिखाए और छात्रों को गार्ड के साथ पग चिह्नों की पहचान और पता लगाने के लिए एक मौका मिला।
एक सदी पहले 100,000 बाघों से आज दुनिया भर में सिर्फ 3500 तक बाघ बचे हैं। यह वर्कशॉप बाघों द्वारा अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए सामना करने वाले मुसीबतों को संबोधित किया। बाघ और उसका घर जो लगातार खतरे के अंतर्गत है, अब हमारे अस्तित्व का आधार बन गया है।
वर्कशॉप के अंत में, हमने छात्रों को उनकी तस्वीरें दिखाई जो गुप्त रूप से उनके आसपास स्थापित कैमरे द्वारा क्लिक किया गया था; वे तो स्क्रीन पर खुद को देखने के लिए रोमांचित थे!
(We started our program of workshops for the students of the forest villages of Tikadi, Paraspani and Sarrah in July, 2013. With immense support from the Pench Tiger Reserve staff, we now reach out to over 200 students. Since the students who live more than 30 kilometres away from the E-Base in Turia couldn’t reach us, we decided to reach them. With modified versions of our workshops and carrying all our materials and equipment, we travel close to 35 kilometres through the tiger reserve to meet the students. The eager faces and shy giggles on experiencing our workshops have made it worth the travelling and long days.
Follow us virtually as we travel in a Bolero full to the roof with globes, charts, science experiment materials and the likes to bring to these students the best from the E-Base.)